कानून का मकसद हिन्दू विरोधी अल्पसंख्यक वोट बैंक कायम करना है।
कहने को इस का मकसद देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकना है, लेकिन इसका असली मकसद काँग्रेस के लिये और खास तौर पर सोनियां परिवार के लिये अल्प संख्यक वोट बैंक मज़बूत करना है। यह कानून पूरी तरह से दुर्भावना, पक्षपात एवं दुराग्रह से ग्रसित है और इस का प्रभाव हिन्दूओं के हाथ पाँव बाँध कर उन की पीठ में छुरा घोंपना है।
हिन्दू विरोधी दिमाग की उपज - जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक लोग शामिल हैं। विधेयक के इरादे क्या हों दे इस की आसानी से कल्पना की जा सकती है।
परिभाषाओं का छुपा मतलब - कानून में बहुसंख्यकों का अर्थ हिन्दूओं से है और अल्प संख्यकों में मुस्लिम, इसाई, तो आते ही हैं उन के साथ अनुसूचित जातियों और जन जातियों को जोडने का बन्दोबस्त भी हो गा। मतलब साफ है हिन्दूओं को तोड कर अनुसूचित जातियों को भी संरक्षण पक्षपात या किसी प्रलोभन के बहाने हिन्दू विरोधी बना कर अल्पसंख्यक वोट बैंक का विस्तार किया जाये गा।
विपक्षी सरकारों को तोडना - यह भारत के संघीय ढांचे को ही नष्ट कर देगा। सांम्प्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध राज्यों के कार्यक्षेत्र में आते है। यदि प्रस्तावित बिल कानून बन जाता है तो केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़प लेगी। जिस प्राँत में भी केन्द्र विरोधी सरकार होगी उस में इस कानून की आड में केन्द्र सरकार पूरी दखलांदाजी कर सके गी।
हिन्दू-मुस्लिमों के बीच शत्रुता - इस विधेयक के द्वारा न केवल बहुसंख्यकों अर्थात हिन्दूओं को आक्रामक और अपराधी वर्ग में ला खड़ा करने, बल्कि हिन्दू-मुस्लिमों के बीच शत्रुता पैदा कर हर गली-कस्बे में दंगे करवाने की साजिश है।
हिन्दू विरोधी प्रावधान - इस कानून में ‘समूह’ की परिभाषा से मतलब पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें अनुसूचित जाति व जनजाति को भी शामिल किया जा सकता है। अल्प संख्यकों में मुस्लिम, इसाई, तो आते ही हैं उन के साथ अनुसूचित जातियों और जन जातियों को जोडने का बन्दोबस्त भी हो गा। जरूरत पडने पर सिखों, बौद्धों, तथा किसी को भी भाषायी अल्पसंख्यक बनाया जा सकता है।
किसी भी बहुसंख्यक (हिन्दू) पर कोई भी अल्पसंख्यक नफरत फैलाने, हमला करने, साजिश करने अथवा नफरत फैलाने के लिए आर्थिक मदद देने या शत्रुता का भाव फैलाने के नाम पर मुकदमा दर्ज करवा सकेगा और उस बेचारे बहुसंख्यक (हिन्दू) को इस कानून के तहत कभी शिकायतकर्ता की पहचान तक का हक नहीं होगा। इसमें शिकायतकर्ता के नाम और पते की जानकारी उस व्यक्ति को नहीं दी जाएगी जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है।
केवल हिन्दूओं को त्रास्त करना
घृणा या दुष्प्रचार –शब्दों द्वारा या बोले गए या लिखे गए या चित्रण किये गए किसी दृश्य को प्रकाशित, संप्रेषित या प्रचारित करना, जिससे किसी समूह या समूह के व्यक्तियों के विरुद्ध समानताय या विशिष्टतया हिंसा का खतरा होता है या कोई व्यक्ति इसी सूचना का प्रसारण या प्रचार करता है या कोई ऐसा विज्ञापन व सूचना प्रकाशित करता है जिसका अर्थ यह लगाया जा सकता हो कि इसमें घृणा को बढ़ावा देने या फ़ैलाने का आशय निहित है ! उस समूह के व्यक्तियों के प्रति इसी घृणा उत्पन्न होने की सम्भावना के आधार पर वह व्यक्ति दुष्प्रचार का दोषी है ! ऐसी प्रस्थिति में यदि कोई समाचार – पत्र आतंकवादियों के उन्माद भरे बयानों प्रकाशित करता है तो उसका प्रकाशक अपराधी मना जायेगा ! अर्थात फाँसी की सजा काट रहे आतंकवादियों का नाम प्रकाशित करने पर भी पाबंदी होगी ! आतंकवाद के खिलाफ परिचर्चा, राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन करना भी अपराध माना जायेगा जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार को भी बाधित करेगा !
किसी बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना,बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा। मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक हानि कि मापने पा पैमाना क्या होगा यह स्पष्ट नहीं किया गया
भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी।
विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे।
अधिनियम का प्रभाव क्षेत्र – सम्पूर्ण भारतवर्ष होगा । जम्मू-कश्मीर में राज्य की सहमति से इसे विस्तारित किया जायेगा । जम्मू-कश्मीर में इस प्रकार का कानून आतंकवादियों और उन के सहयोगियों के लिये रास्ता आसान कर दे गा।
यह अधिनियम पारित किये जाने की तारीख से एक वर्ष के भीतर लागू होगा तथा एसे अपराध जो भारत के बाहर किये गए है उन पर भी इस अधिनियम के अंतर्गत उसी प्रकार कार्यवाही होगी जैसे वह भारत के भीतर किया गया हो !
काँग्रेस पार्टी पूर्णत्या हिन्दू विरोधी है
एक वर्ष के भीतर लागू किये जाने की बाध्यता को रखकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार समिति की वर्तमान अध्यक्षा के रहते ही यह कानूनी अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाय !
हिन्दूओं के लिये अब अभी नहीं तो कभी नही वाली स्थिति
हिन्दूओं को चाहिये कि इस काले कानून का संसद में, गलियों में मीडीया में सभी प्रकार से विरोध करें और सडकों पर उतरें।
इस कानून के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका डालें।
साम्प्रदायकता रोकने के लिये आसान रास्ता समान आचार संहिता लागू करना
सऱकार से माँग करें कि अगर देश में ऐकता लानी है तो समान आचार संहिता लागू करवायें जिस से अल्प संख्यक और बहु संख्यक का भेद अपने आप ही खत्म हो जाये गा।
किसी को ज्ञापन देने से कुछ नहीं हो गा। अब हिन्दूओं को फैसला करना हो गा कि देश को धर्म हीन बना कर दूसरों के हवाले करना है या फिर उसे हिन्दू राष्ट्र बना कर अपना अस्तीत्व सुरक्षित करना है।
.................................................................................................................. द्वारा : अपनी सोच
कहने को इस का मकसद देश में सांप्रदायिक हिंसा को रोकना है, लेकिन इसका असली मकसद काँग्रेस के लिये और खास तौर पर सोनियां परिवार के लिये अल्प संख्यक वोट बैंक मज़बूत करना है। यह कानून पूरी तरह से दुर्भावना, पक्षपात एवं दुराग्रह से ग्रसित है और इस का प्रभाव हिन्दूओं के हाथ पाँव बाँध कर उन की पीठ में छुरा घोंपना है।
हिन्दू विरोधी दिमाग की उपज - जिस ड्राफ्ट कमेटी ने इस विधेयक को बनाया है, उसका चरित्र ही इस विधेयक के इरादे को स्पष्ट कर देता है। इसके सदस्यों और सलाहकारों में हर्ष मंडेर, अनु आगा, तीस्ता सीतलवाड़, फराह नकवी जैसे हिन्दू विद्वेषी तथा सैयद शहाबुद्दीन, जॉन दयाल, शबनम हाशमी और नियाज फारुखी जैसे घोर साम्प्रदायिक लोग शामिल हैं। विधेयक के इरादे क्या हों दे इस की आसानी से कल्पना की जा सकती है।
परिभाषाओं का छुपा मतलब - कानून में बहुसंख्यकों का अर्थ हिन्दूओं से है और अल्प संख्यकों में मुस्लिम, इसाई, तो आते ही हैं उन के साथ अनुसूचित जातियों और जन जातियों को जोडने का बन्दोबस्त भी हो गा। मतलब साफ है हिन्दूओं को तोड कर अनुसूचित जातियों को भी संरक्षण पक्षपात या किसी प्रलोभन के बहाने हिन्दू विरोधी बना कर अल्पसंख्यक वोट बैंक का विस्तार किया जाये गा।
विपक्षी सरकारों को तोडना - यह भारत के संघीय ढांचे को ही नष्ट कर देगा। सांम्प्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध राज्यों के कार्यक्षेत्र में आते है। यदि प्रस्तावित बिल कानून बन जाता है तो केन्द्र सरकार राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़प लेगी। जिस प्राँत में भी केन्द्र विरोधी सरकार होगी उस में इस कानून की आड में केन्द्र सरकार पूरी दखलांदाजी कर सके गी।
हिन्दू-मुस्लिमों के बीच शत्रुता - इस विधेयक के द्वारा न केवल बहुसंख्यकों अर्थात हिन्दूओं को आक्रामक और अपराधी वर्ग में ला खड़ा करने, बल्कि हिन्दू-मुस्लिमों के बीच शत्रुता पैदा कर हर गली-कस्बे में दंगे करवाने की साजिश है।
हिन्दू विरोधी प्रावधान - इस कानून में ‘समूह’ की परिभाषा से मतलब पंथिक या भाषायी अल्पसंख्यकों से है, जिसमें अनुसूचित जाति व जनजाति को भी शामिल किया जा सकता है। अल्प संख्यकों में मुस्लिम, इसाई, तो आते ही हैं उन के साथ अनुसूचित जातियों और जन जातियों को जोडने का बन्दोबस्त भी हो गा। जरूरत पडने पर सिखों, बौद्धों, तथा किसी को भी भाषायी अल्पसंख्यक बनाया जा सकता है।
किसी भी बहुसंख्यक (हिन्दू) पर कोई भी अल्पसंख्यक नफरत फैलाने, हमला करने, साजिश करने अथवा नफरत फैलाने के लिए आर्थिक मदद देने या शत्रुता का भाव फैलाने के नाम पर मुकदमा दर्ज करवा सकेगा और उस बेचारे बहुसंख्यक (हिन्दू) को इस कानून के तहत कभी शिकायतकर्ता की पहचान तक का हक नहीं होगा। इसमें शिकायतकर्ता के नाम और पते की जानकारी उस व्यक्ति को नहीं दी जाएगी जिसके खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है।
केवल हिन्दूओं को त्रास्त करना
- शिकायतकर्ता अल्पसंख्यक अपने घर बैठे शिकायत दर्ज करवा सकेगा।
- इसी प्रकार यौन शोषण व यौन अपराध के मामले भी केवल अल्पसंख्यक ही हिन्दू के विरुद्ध शिकायत दर्ज करवा सकेगा और ये सभी मामले अनुसूचित जाति और जनजाति पर किए जाने वाले अपराधों के साथ समानांतर चलाए जाएंगे। हिन्दू व्यक्ति को कभी यह नहीं बताया जाएगा कि उसके खिलाफ शिकायत किसने दर्ज कराई है।
- उसे एक ही तथाकथित अपराध के लिए दो बार दो अलग-अलग कानूनों के तहत दंडित किया जाएगा।
- इस अधिनियम के अनुसार पीड़ित वही व्यक्ति है जो किसी समूह का सदस्य है। अतः कोई हिन्दू इस कानून के तहत पीडित व्यक्ति नहीं बन सकता। समूह के बाहर किसी बहुसंख्यक की महिला से अगर दुराचार किया जाता है या अपमानित किया जाता है या जान-माल की हानि या क्षति पहुचाई जाती है तो भी बहुसंख्यक पुरुष या महिला पीड़ित नहीं माने जायेगे । यह कानून हिन्दूओं को परिताडित करने के लिये ही बनाया जाये गा।
- अपराध के फलस्वरूप किसी समूह का कोई व्यक्ति शारीरिक, मानसिक मनोवैज्ञानिक या आर्थिक हानि उठाता है तो न केवल वह अल्पसंख्यक व्यक्ति बल्कि उसके रिश्ते-नातेदार, विधिक संरक्षक और विधिक वारिस भी पीड़ित माने जायेगे !
- दंगो के दौरान होने वाले जान और माल के नुकसान पर मुआवजे के हक़दार सिर्फ अल्पसंख्यक ही होंगे। किसी बहुसंख्यक का भले ही दंगों में पूरा परिवार और संपत्ति नष्ट हो जाए उसे किसी तरह का मुआवजा नहीं मिलेगा।
- यह विधेयक पुलिस और सैनिक अफसरों के विरुद्ध उसी तरह बर्ताव करता है जिस तरह से कश्मीरी आतंकवादी उनके खिलाफ रुख अपनाते हैं। यानी अगर शरारती तत्व सुरक्षा कर्मियों पर पत्थर या हथगोले फैंके तो वह पीडित ही माने जायें गे और अपनी डयूटी करते हुये सुरक्षा कर्मी यदि बल का प्रयोग करें तो वह अपनी सफाइ देने के लिये दोषी बन कर कटघडे में ही खडे हों गे।
- विधेयक में ‘समूह’ यानी अल्पसंख्यक के विरुद्ध किसी भी हमले या दंगे के समय यदि पुलिस, अर्द्धसैनिक बल अथवा सेना तुरंत और प्रभावी ढंग से स्थिति पर नियंत्रण प्राप्त नहीं करती तो उस बल के नियंत्रणकर्ता अथवा प्रमुख के विरुद्ध आपराधिक धाराओं में मुकदमे चलाए जाएंगे। स्थिति पर नियंत्रण जैसी परिस्थिति किसी भी ढंग से परिभाषित की जा सकती है।
- किसी संगठन का कोई कार्यकर्त्ता या वरिष्ठतम अधिकारी या पद धारी अपनी कमान के नियंत्रण पर्यवेक्षक के अधीन अधीनस्थों के ऊपर नियंत्रण रखने में असफल रहता है तो इस अधिनियम के अधीन यदि कोई अपराध किया जाता है तो वह अपने अधीनस्थों द्वारा किये गए अपराध का दोषी होगा ! अर्थात किसी संगठन का सामान्य से सामान्य कार्यकर्त्ता भी इस अधिनियम के आधार पर यदि अपराधी सिद्ध होता है तो शीर्ष नेतृत्व भी अपराधी माना जायेगा । अगर निचले सत्र का कोई कर्मी जानबूझ कर या लापरवाही से किसी अल्पसंख्यक को नुकसान पहुँचाता है तो उस दल के अफसर को दोषी बनाया जा सकता है। अतः कोई अपने अफसर को नीचा दिखाने के लिये अपनी लापरवाही से उसे दँडित करवा सके गा। सशस्त्र बलों में अनुशासन हीनता को बढावा मिले गा।
- सांप्रदायिक हिंसा रोकने के लिए जिस सात सदस्यीय समिति के गठन की सिफारिश की है, उसमें चार सदस्य मजहबी अल्पसंख्यक होंगे। यदि समिति में अल्पसंख्यकों का बहुमत नहीं होगा तो समिति न्याय नहीं कर सकेगी।
घृणा या दुष्प्रचार –शब्दों द्वारा या बोले गए या लिखे गए या चित्रण किये गए किसी दृश्य को प्रकाशित, संप्रेषित या प्रचारित करना, जिससे किसी समूह या समूह के व्यक्तियों के विरुद्ध समानताय या विशिष्टतया हिंसा का खतरा होता है या कोई व्यक्ति इसी सूचना का प्रसारण या प्रचार करता है या कोई ऐसा विज्ञापन व सूचना प्रकाशित करता है जिसका अर्थ यह लगाया जा सकता हो कि इसमें घृणा को बढ़ावा देने या फ़ैलाने का आशय निहित है ! उस समूह के व्यक्तियों के प्रति इसी घृणा उत्पन्न होने की सम्भावना के आधार पर वह व्यक्ति दुष्प्रचार का दोषी है ! ऐसी प्रस्थिति में यदि कोई समाचार – पत्र आतंकवादियों के उन्माद भरे बयानों प्रकाशित करता है तो उसका प्रकाशक अपराधी मना जायेगा ! अर्थात फाँसी की सजा काट रहे आतंकवादियों का नाम प्रकाशित करने पर भी पाबंदी होगी ! आतंकवाद के खिलाफ परिचर्चा, राष्ट्रीय सेमीनार का आयोजन करना भी अपराध माना जायेगा जो कि संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार को भी बाधित करेगा !
किसी बहुसंख्यक की किसी बात से किसी अल्पसंख्यक को मानसिक कष्ट हुआ है तो वह भी अपराध माना जायेगा। अल्पसंख्यक वर्ग के किसी व्यक्ति के अपराधिक कृत्य का शाब्दिक विरोध भी इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध माना जायेगा। यानि अब अफजल गुरु को फांसी की मांग करना,बांग्लादेशी घुसपैठियों के निष्कासन की मांग करना, धर्मान्तरण पर रोक लगाने की मांग करना भी अपराध बन जायेगा। मानसिक एवं मनोवैज्ञानिक हानि कि मापने पा पैमाना क्या होगा यह स्पष्ट नहीं किया गया
भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुसार किसी आरोपी को तब तक निरपराध माना जायेगा जब तक वह दोषी सिद्ध न हो जाये; परन्तु, इस विधेयक में आरोपी तब तक दोषी माना जायेगा जब तक वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध न कर दे। इसका मतलब होगा कि किसी भी गैर हिन्दू के लिए अब किसी हिन्दू को जेल भेजना आसान हो जाएगा। वह केवल आरोप लगाएगा और पुलिस अधिकारी आरोपी हिन्दू को जेल में डाल देगा। इस विधेयक के प्रावधान पुलिस अधिकारी को इतना कस देते हैं कि वह उसे जेल में रखने का पूरा प्रयास करेगा ही क्योंकि उसे अपनी प्रगति रिपोर्ट शिकायतकर्ता को निरंतर भेजनी होगी।
विधेयक अगर पास हो जाता है तो हिन्दुओं का भारत में जीना दूभर हो जायेगा। देश द्रोही और हिन्दू द्रोही तत्व खुलकर भारत और हिन्दू समाज को समाप्त करने का षडयन्त्र करते रहेंगे; परन्तु हिन्दू संगठन इनको रोकना तो दूर इनके विरुध्द आवाज भी नहीं उठा पायेंगे।
अधिनियम का प्रभाव क्षेत्र – सम्पूर्ण भारतवर्ष होगा । जम्मू-कश्मीर में राज्य की सहमति से इसे विस्तारित किया जायेगा । जम्मू-कश्मीर में इस प्रकार का कानून आतंकवादियों और उन के सहयोगियों के लिये रास्ता आसान कर दे गा।
यह अधिनियम पारित किये जाने की तारीख से एक वर्ष के भीतर लागू होगा तथा एसे अपराध जो भारत के बाहर किये गए है उन पर भी इस अधिनियम के अंतर्गत उसी प्रकार कार्यवाही होगी जैसे वह भारत के भीतर किया गया हो !
काँग्रेस पार्टी पूर्णत्या हिन्दू विरोधी है
एक वर्ष के भीतर लागू किये जाने की बाध्यता को रखकर यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है कि वर्तमान सरकार और राष्ट्रीय सलाहकार समिति की वर्तमान अध्यक्षा के रहते ही यह कानूनी अनिवार्य रूप से लागू कर दिया जाय !
हिन्दूओं के लिये अब अभी नहीं तो कभी नही वाली स्थिति
हिन्दूओं को चाहिये कि इस काले कानून का संसद में, गलियों में मीडीया में सभी प्रकार से विरोध करें और सडकों पर उतरें।
इस कानून के विरुद्ध उच्चतम न्यायालय में याचिका डालें।
साम्प्रदायकता रोकने के लिये आसान रास्ता समान आचार संहिता लागू करना
सऱकार से माँग करें कि अगर देश में ऐकता लानी है तो समान आचार संहिता लागू करवायें जिस से अल्प संख्यक और बहु संख्यक का भेद अपने आप ही खत्म हो जाये गा।
किसी को ज्ञापन देने से कुछ नहीं हो गा। अब हिन्दूओं को फैसला करना हो गा कि देश को धर्म हीन बना कर दूसरों के हवाले करना है या फिर उसे हिन्दू राष्ट्र बना कर अपना अस्तीत्व सुरक्षित करना है।
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